tag:blogger.com,1999:blog-629345758127814069.post4567665943106437677..comments2023-04-26T05:41:47.714-07:00Comments on रचना की भूमि पर आलोचना की पहली आँख: rajanaargadehttp://www.blogger.com/profile/13433321371626724858noreply@blogger.comBlogger2125tag:blogger.com,1999:blog-629345758127814069.post-75359356750515510102010-07-03T03:47:13.258-07:002010-07-03T03:47:13.258-07:00अपनी जड़ों को जानने की इतनी ज़िद तो लाजिमी ही है.....अपनी जड़ों को जानने की इतनी ज़िद तो लाजिमी ही है.. रही बात देश भर में चल रहे 'जय हे' के शोर की तो उसे भी आप ने बेहतर ढंग से समझा है.. बहुत संतुलित तरीके से, शिवा जी से कुछ आगे-पीछे महाराष्ट्र को जानना अच्छा लगा. <br />हाँ, आपके कुलपति जी की टिप्पणी दुखद लगी, पर उससे दुखद शायद ये तथ्य है कि ये कुर्सियाँ विभेद के ऐसे ही पायों पर टिकी होती हैं. फिर भी चलिए आपने वहां भी अपने काम की प्रेरणा तो निकाल ही ली...<br />ब्लाग पर पहली बार आया हूँ...संतुलित लिखतीं हैं आप.. शुभकामनायें.विवेक.https://www.blogger.com/profile/12529921401145176797noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-629345758127814069.post-31638414073489851542010-05-29T04:33:04.244-07:002010-05-29T04:33:04.244-07:00niceniceमाधव( Madhav)https://www.blogger.com/profile/07993697625251806552noreply@blogger.com