हिला कर रख दिया है महिला बिल ने सभी को। यही हमारे समाज
की लिटमस परीक्षा है। कौन कितने पानी में है महिलाओं की स्वतंत्रता
और अधिकारों के प्रति यह अब खुलने लगा है। मैं तो कहती हूँ हो
जाये हिसाब किताब। अगर हमारे धर्माचार्यों को( दोनों ) को कुबूल नहीं कि
महिला आरक्षण हो, तो मैं कहती हूँ धर्म और भगवान का भी बँटवारा
हो जाए। महिलाएं अब अपना अलग मंदिर बनाएँ। पुजारी भी वही हों,
इसमें पुरुषों को प्रवेश न हो। सारी देवियाँ महिलाओं के हिस्से।अब से
अंबा, दुर्गा, भवानी, ग्राम-देवियाँ, सरस्वती, गायत्री किसीको भी पूजने का
हक़ पुरुषों को न हो। विष्णु आप लें , लक्ष्मी हम ले लेते हैं। रिद्धि-
सिद्धि हमारी, गणेशजी आपके। राधा हमारी , कृष्ण आपके। पार्वती
तथा आधे शंकर हमारे आपके केवल आधे शंकर। महिलाएँ मरें तो
महिला पुजारी सब करें-विधि-विधान। इस संदर्भ में और भी बहुत कुछ
कहा जा सकता है। पर पहले इतना तय हो जाए--फिर आगे की बात।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें